रावण कौन था? अगर आप भारत में रहते हैं; तो आपके लिए यह एक बचकाना सवाल होगा। क्योंकि भारत में रहने वाला बच्चा बच्चा भी रावण के पात्र से रूबरू है। हां यह बिल्कुल मुमकिन है कि - सबके विचार में विभिन्नता हो सकती है। कोई रावण को बहुत बुरा समझता होगा; तो कोई रावण को बुद्धिमान समझता होगा। रावण, भगवान राम की रामायण का एक महत्वपूर्ण पात्र है। इसीलिए आज की इस पोस्ट में हम आपको "रावण का संपूर्ण जीवन चरित्र" के बारे में संपूर्ण जानकारी दे रहे हैं।

रावण का संपूर्ण जीवन चरित्र हिंदी में - Technical Prajapati
रावण का संपूर्ण जीवन चरित्र हिंदी में!

परिचय

रावण का नाम सुनते ही हमारे मस्तिष्क में 10 मुख वाले राक्षस का काल्पनिक चित्र बन जाता है। क्योंकि बचपन से लेकर आज तक हमने रावण को 10 सिर के साथ ही अनेक उल्लेखों में पाया है; और यही रावण की पहचान है। इसीलिए रावण को दशानन भी कहा जाता है। प्रतिवर्ष दशहरे के दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के तौर पर हम रावण की प्रतिमा को जलाते हैं; क्योंकि रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है। यह इसलिए क्योंकि रावण ने मां सीता का अपहरण किया था।

दोस्तों, भले ही रावण राक्षस कुल का था। इसके बावजूद भी रावण में ऐसे कई गुण थे; जो उसे महान बनाते थे। कई पौराणिक ग्रंथों के अनुसार - रावण को ग्रंथों का ज्ञाता बताया गया है। रावण ने अपनी बुद्धिमत्ता और ज्ञान से भगवान शंकर को भी प्रसन्न कर दिया था।

दोस्तों, वह कहते हैं ना - हर इंसान में कुछ अच्छाइयां और कुछ बुराइयां होती हैं। अब देखने वाले पर निर्भर करता है कि - वह उसकी अच्छाइयां देख रहा है या उसकी बुराइयां।

रावण का संपूर्ण जीवन चरित्र

नाम रावण
अन्य नाम दशानन,दसग्रीव, रावुला, रावणेश्वरन, ईला वेंधर, लंकापति, लंकेश्वर, लंकेश्वरन, दासिस रावण, दासिस सविथि महा रावण और रावणासुर
पिता का नाम विश्रवा
माता का नाम कैकसी
बहन का नाम शूर्पणखा (चंद्रमुखी)
भाइयों का नाम विभीषण, कुंभकरण, अहिरावण (कुछ स्त्रोतों के अनुसार), कुबेर (सौतेला भाई)
पत्नियों के नाम 1. मंदोदरी
2. दम्यमालिनी
3. तीसरी पत्नी का जिक्र कहीं नहीं मिला।
रावण की संताने 1. मेघनाद और अक्षय कुमार (मंदोदरी)
2. अतिक्या और त्रिशिरार (दम्यमालिनी)
3. प्रहस्था, नरांतका और देवताका (अज्ञात पत्नी)
रावण की जाति ब्राम्हण
ससुराल मंडोर, जोधपुर (राजस्थान)

रावण की कुछ चित्र - Technical Prajapati
रावण की कुछ चित्र

रावण का जन्म

रावण का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता (ऋषि) विश्रवा और मां (राक्षसी) कैकसी थी। भले ही उनके पिता एक ब्राह्मण थे; लेकिन उनकी माता राक्षस कुल की थी।

दोस्तों, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह कहा जाता है; कि - रावण के नाना (रावण की मां कैकसी के पिता) देयों के राजा सोमाली, कैकसी की शादी नश्वर दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति से कराना चाहते थे। ताकि, उससे एक असाधारण संतान का जन्म हो सके। लेकिन समस्या यहां यह उत्पन्न हो रही थी; कि - कैकसी के पिता को अपने से बड़ा शक्तिशाली व्यक्ति नहीं मिल रहा था। यही वजह थी की उन्होंने विश्व के बड़े-बड़े राजाओं के भी प्रस्ताव ठुकरा दिए थे। पश्चात् कैकसी ने ऋषियों में अपने वर की खोज कि और आखिरकार ऋषि विश्रवा को वर के रूप में चुन लिया। विवाह होने के पश्चात आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को रावण का जन्म हुआ था।

रावण के कितने भाई बहन थे?

विभीषण और कुंभकरण पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रावण के यह दो भाई थे। कुंभकरण भी रावण की तरह राक्षस प्रवृत्ति का था। लेकिन विभीषण राक्षस कुल में जन्म लेने के बावजूद भी भगवान राम के भक्त हुए।

दोस्तों वही कुछ और स्त्रोतों के माध्यम से रावण के एक और भाई का उल्लेख मिलता है; जिसका नाम अहिरावण बताया गया है। इसी के साथ रावण का एक सौतेला भाई भी था; जिसका नाम कुबेर था। रावण की एक बहन जिसका नाम चंद्रमुखी था। हालांकि, चंद्रमुखी को हम सब शूर्पणखा के नाम से जानते हैं।

दोस्तों, रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर से अपनी शक्तियों के दम पर लंका छीनी और लंका का राजा बन गया।

रावण ने कौन सी शिक्षा अर्जित की थी?

दोस्तों पौराणिक ग्रंथों के अनुसार रावण को ग्रंथों का ज्ञाता कहा गया है। रावण ने अपने पिता ऋषि विश्रवा के सानिध्य में पवित्र ग्रंथों एंव वेदों का ज्ञान हासिल किया। इसी के साथ वह युद्ध कला में भी प्रवीण हो गए।

रावण एक उत्कृष्ट वीणा वादक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्हें बचपन से ही वीणा बजाने का शौक था। यह शौक कितना जबरदस्त था? इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि - उनके ध्वज पर भी वीणा का चिन्ह हुआ करता था। आपको बता दें - स्वर्ग लोक से देवता भी उनके वीणा वादन को सुनने के लिए आया करते थे।

ब्रह्मा जी ने रावण को कौन सा वरदान दिया?

प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात युवा अवस्था में ही रावण तपस्या करने निकल गया। उसे पता था कि - ब्रह्मा जी उसके परदादा है। इसीलिए उसने पहले उनकी घोर तपस्या की और कई वर्षों तक तपस्या करने के पश्चात ब्रह्मा जी ने रावण को वरदान मांगने के लिए कहा। तब रावण ने अजर-अमर होने का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने यह वरदान देने में सक्षम ना होने की बात की और इस वरदान के बदले अन्य शक्तियां देने को कहा। इस वक्त रावण ने ब्रह्मा जी से शक्तियां प्राप्त कर ली।

ब्रह्मा जी से शक्तियां प्राप्त कर लेने के पश्चात रावण को अभिमान हो गया और 1 दिन रावण की भिड़ंत सहस्त्रबाहु अर्जुन से हो गई और अर्जुन ने रावण को कैद कर लिया। हालांकि, रावण के दादा मुनि पुलस्त्य ने संदेश भिजवाकर रावण को अर्जुन की कैद से रिहा करवाया। अर्जुन ने सिर्फ चेतावनी देकर रावण को छोड़ दिया।

रावण के साथ घटी यह घटना से रावण को बहुत ग्लानि महसूस हुई और उसने पुनः एक बार ब्रह्मा जी की तपस्या शुरू की। ब्रह्मा जी पुनः प्रकट हुए और रावण ने फिर एक बार अमर होने का वरदान मांगा। लेकिन इस बार भी रावण को अमर होने का वरदान ना मिलते हुए और ज्यादा मायावी शक्तियां वरदान स्वरूप प्राप्त हुई।

इस बार रावण की भिड़ंत राजा बाली से हुई। राजा बाली एक वृक्ष के नीचे संध्या जप कर रहे थे। तब रावण उन्हें देख कर हंस रहा था और उनका उपहास करने लगा। इसी के साथ युद्ध के लिए उकसाने लगा। क्योंकि उसे ब्रह्मा जी से अधिक मायावी शक्तियां प्राप्त हुई थी। रावण घमंड में था। इसीलिए उसने बाली को लात मारकर मुझसे डर कर ध्यान में बैठे होने की बात कही। रावण सुनना चाहता था की - बाली उससे कहें कि "मैं तुमसे नहीं लड़ सकता"। पर लात मार देने की वजह से राजा बाली का ध्यान भंग हो गया और इस बार राजा बाली ने रावण को पटक पटक कर बहुत मारा। रावण सिर्फ मरने से बचा था। बाली ने रावण को 6 महीने तक अपनी कैद में रखा। एक दिन बाली रावण को अपने बाएं हाथ से अपनी कांख में दबाकर जा रहे थे। तभी उनके हाथ की पकड़ ढीली हो गई और रावण निकलकर भाग गया। अब रावण को पता चल गया कि - दुनिया में उससे भी बलशाली लोग हैं।

इस बार रावण घोर तपस्या करने निकल पड़ा और ब्रह्मा जी से एक बार फिर अमरता का वरदान मांगा। ब्रह्मा जी ने अमरता का वरदान अधिकार में ना होने की बात कह कर इस बार प्रचंड शक्तियां और ब्रह्मास्त्र वरदान में दे दिया। इसे पाकर रावण ने स्वर्ग पर अकेले ही चढ़ाई दी और स्वर्ग पर अपना अधिकार कर लिया।

रावण को अमरता का वरदान चाहिए था। इसलिए वह फिर से ब्रह्मा जी की तपस्या करता है। ब्रह्मा जी के आने के बाद फिर अमरता का वरदान मांगता है। लेकिन ब्रह्मा जी इस बार भी उसे मना कर देते हैं और वहां से चले जाते हैं। उनके जाने के बाद फिर रावण ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करता है। ब्रह्मा जी फिर रावण को दर्शन देते हैं और उसे समझाते हैं कि - तुम ज्ञानी हो, बुद्धिमान हो तुम्हें पता है कि - मुझ में संसार के नियम को फेरने की शक्ति नहीं है। तुम मुझसे अमरता का वरदान मत मांगो। तुम्हारी बार-बार तपस्या से मुझे व्यवधान (Disturb) हो रहा है। इसलिए मैं तुम्हारी नाभि में एक अमृत कुंड प्रदान कर देता हूं और जब तक यह अमृत कुंड तुम्हारी नाभि में रहेगा तब तक तुम्हारी मृत्यु नहीं होगी। इस पर रावण ने ब्रह्मा जी से पूछा कि - अमृत कुंड नाभि में कब तक रहेगा? तब ब्रह्मा जी बताते हैं कि - अमृत कुंड केवल अग्निबाण से ही सुख सकता है।

रावण ने सोचा कि - चलो यह अमर होने जैसा कुछ लग रहा है। क्योंकि, अग्निबाण केवल भगवान विष्णु ही चला सकते हैं। इसके पश्चात रावण, ब्रह्मा जी से कहता है कि - आपने मुझे अमर होने का वरदान तो नहीं दिया। आपने जो मुझे दिया उसे मैं स्वीकार कर लेता हूं। लेकिन, इसके बावजूद भी आपको कुछ देना होगा। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा - तुम अमर होने के अतिरिक्त जो कुछ मांगो मैं देने को तैयार हूं। तब रावण ने कुछ इस तरह वरदान मांगा - देव, दनुज, नाग, यक्ष, किन्नर, गंधर्व कोई भी युद्द में न मार सके। इस पर ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह दिया।

आखिर कैसे बना रावण लंका का राजा?

रावण लंका का राजा था। इसी वजह से रावण को लंकेश्वर के नाम से भी हम जानते हैं। लेकिन, आखिरकार रावण लंका का राजा कैसे बना? इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है; आइए आपको बताते हैं।

दोस्तों जब रावण ने भगवान शिव से चमत्कारी शक्तियां प्राप्त कर ली। इसके पश्चात वह अपने नाना (देयों के राजा तथा रावण की मां कैकसी के पिता) सोमाली की सहायता से अपनी शक्तियों का विस्तार करने के लिए सेना का नेतृत्व करने लगा। इसी दौरान रावण की नजर लंका पर पड़ी।

दोस्तों आपको यह जानकर हैरानी होगी कि - लंका का निर्माण भगवान शिव ने मां पार्वती के लिए भगवान विश्वकर्मा के द्वारा करवाया था। इस सुंदर और रमणीय लंका के ग्रह प्रवेश की पूजा करवाने के लिए ऋषि विश्रवा जो रावण के पिता थे; उन्हें बुलाया गया था। आज तक आपने ऐसी घटना नहीं सुनी होगी जो उस समय हुई थी। विश्रवा ने पूजा के बाद दक्षिणा में लंका को ही मांग लिया।

रावण के सौतेले भाई कुबेर ने रावण सहित अन्य भाई बहनों को यह संदेश पहुंचाया की लंका अब उन सभी का हो चुका है। लेकिन, रावण लंका पर अपना अधिकार जमाना चाहता था। इसीलिए रावण ने कुबेर को अपनी शक्तियों के बल से हराकर लंका पर अपना कब्जा कर लिया। इस तरह रावण लंका का राजा बन गया।

कैसे बना रावण भगवान शिव का परम भक्त?

ब्रह्मा ने जब रावण को अमरता का वरदान देने से मना किया तो यह भी कहा कि - यह वरदान तुम्हें केवल महादेव ही दे सकते हैं। इस वजह से रावण ने भोलेनाथ की तपस्या शुरू कर दी। कई वर्षों तक तपस्या करने के पश्चात भी भोलेनाथ प्रकट नहीं हुए। रावण सोचने लगा कि - महादेव ही है; जो बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और वह शायद मुझसे अप्रसन्न है। यह सोचकर कठोर तपस्या करने लगा। रावण कभी निराहार रहकर तो कभी भगवान भोलेनाथ की सुंदर स्त्रोतों से वीणा वादन कर तपस्या करता रहा। लेकिन, भोलेनाथ प्रकट नहीं हुए। इतनी तपस्या करने के पश्चात भी महादेव प्रसन्न नहीं हुए। यह सोच कर रावण आत्मग्लानि से भर गया।

एक दिन रावण भोलेनाथ की पूजा में जब पुष्प चढ़ा रहा था। तब उसे पता चला कि - पुष्प कम पड़ गए हैं। तब उसने पूजा को पूर्ण करने के लिए एक-एक करके अपना सिर काट कर पुष्प की जगह चढ़ाना शुरू कर दिया। रावण यह सोच रहा था कि - अपने जीवन में महादेव को प्रसन्न नहीं कर सका तो ऐसे जीने पर धिक्कार है।

दर्द से रावण बेहोश हो गया। लेकिन फिर भी मुंह से "हर हर महादेव" कहना नहीं छोड़ा। अपने 9 सिर काट देने के बाद जब रावण अपना अंतिम सिर काटने के लिए झुका और अपनी गर्दन पर खड्ग से प्रहार करने वाला ही था। तभी महादेव ने प्रकट होकर रावण का हाथ पकड़ लिया और बोले रावण मुझे बहुत प्रसन्नता हुई। तुमने मेरे लिए अपने प्राण संकट में डाल दिए। मांगो तुम्हें क्या चाहिए?

रावण ने महादेव को नमन किया और कहा कि - महादेव मुझे कुछ नहीं चाहिए आपके सुंदर स्वरूप के दर्शन से मैं धन्य हो गया हूं। आप मुझसे प्रसन्न हो गए इस बात से ही मुझे संतोष हो चुका है। आपने मुझे दर्शन दे दिए; इससे बड़ा मेरे लिए और कोई वरदान नहीं है। इसलिए मैं कहता हूं कि - मुझे कुछ नहीं चाहिए। इस पर महादेव कहते हैं कि - रावण मैं तुम्हारे संकल्प से ही वरदान देने के लिए आया हूं और मैं ऐसे ही वापस नहीं जा सकता। तुम मन में बिना किसी संकोच से मुझसे जो चाहिए वह मांग लो। तब रावण कहता है कि - "हे महादेव" अगर आप मुझे कुछ देना ही चाहते हैं; तो आप मुझे आपकी अटूट भक्ति दे दीजिए और मैं हमेशा "ओम नमः शिवाय" रुपी मंत्र का जप करता रहूं। इसके अलावा मुझे कुछ नहीं चाहिए। रावण की यह बात सुनकर महादेव अत्यंत प्रसन्न हुए और कहते हैं की - जिसका लक्ष्य था अमरता का वरदान प्राप्त करना वह प्रभु भक्ति मांग रहा है। रावण तुमसे बड़ा ज्ञानी और कौन हो सकता है!

महादेव ने भक्ति के अतिरिक्त रावण को अपार बल दे दिया और साथ में पाशुपत नामक अस्त्र दिया। इसी के साथ यह भी वरदान देते हैं कि - अगर तुम्हारे शरीर का कोई अंग कट जाए; तो उस स्थान पर पुनः नया अंग स्वत: ही उग जाएगा।

रावण को राक्षस का श्राप किसने दिया?

रावण महादेव का प्रिय भक्त बन गया। इसी के साथ लंका से प्रतिदिन पुष्पक विमान से रावण कैलाश पर्वत जाता था और वहां भगवान महादेव की पूजा और आराधना करता था। 1 दिन नारद जी लंका गए। वहां रावण ने नारद जी की बहुत अच्छी तरह सेवा की। तब नारद जी ने रावण से कहा - सुना है कि, महादेव ने तुम्हें बल प्रदान किया है। तब रावण ने हां कहा। इस पर नारद जी कहते हैं कि - कितना बल पाए हो? रावण ने कहा - यह तो मुझे पता नहीं, हां पर मैं चाहूं तो पृथ्वी को भी हिला सकता हूं। नारद जी कहते हैं कि - तब तो तुम्हें अपने बल की परीक्षा लेनी चाहिए। क्योंकि, हर व्यक्ति को अपने बल का पता होना चाहिए। रावण को नारद जी की बात सही लगी और कुछ सोचने के बाद रावण कहता है - मैं महादेव को कैलाश पर्वत सहित उठाकर लंका में ही ले आता हूं। यह कैसा रहेगा? इससे मुझे पता चल जाएगा कि - मुझ में कितना बल है? नारद जी कहते हैं कि - विचार बुरा नहीं है और उसके बाद नारदजी चले जाते हैं।

1 दिन रावण अपनी भक्ति और शक्ति के बल पर कैलाश पर्वत सहित महादेव को लंका में ले जाने का प्रयास किया। जैसे ही उसने कैलाश पर्वत को अपने हाथों में उठाया; तो देवी सती फिसलने लगी। देवी सती ने महादेव से पूछा - भगवान यह कैलाश क्यों हिल रहा है? महादेव ने बताया कि - रावण हमें लंका ले जाने की कोशिश कर रहा है। रावण ने कैलाश पर्वत को अपने हाथों में उठा लिया था। अब उसमें बहुत ज्यादा अभिमान भी आ गया था। रावण सोच रहा था कि - अगर वह महादेव समेत कैलाश पर्वत को उठा सकता है; तो अब उसके लिए कोई अन्य काम असंभव नहीं। रावण ने जैसे ही अपना एक कदम आगे रखा; तो उसका संतुलन डगमगाया। लेकिन इसके बावजूद भी रावण अपनी कोशिश में लगा रहा। लेकिन, इतने में ही देवी सती एक बार फिर फिसल गई और उन्हें क्रोध आ गया। इसी क्रोध के चलते उन्होंने रावण को श्राप दे दिया - "अरे अभिमानी रावण तु आज से राक्षसों में गिना जाएगा क्युँकि तेरी प्रकृति राक्षसों की जैसी हो गई है और तु अभिमानी हो गया है"।

देवी सती के श्राप के पश्चात ही रावण की गिनती राक्षसों में होने लगी और रावण की संगति तो पहले से ही राक्षसों से थी ही। इसलिए रावण राक्षसी संगति में अभिमान और गलत कार्य करता चला गया।

रावण ने दूसरी बार महादेव को कैसे प्रसन्न किया?

रावण को पता करना था कि - महादेव ने उसे कितना बल दिया है? इसलिए वह भगवान शिव सहित कैलाश पर्वत को लंका में लाना चाहता है और एक दिन वह यह प्रयास भी करता है। लेकिन, भगवान शिव अपना भार बढ़ाकर कैलाश पर्वत को अपनी जगह स्थित करा देते हैं। चूँकि, कैलाश पर्वत को रावण ने अपने हाथों में उठा रखा था। इसीलिए रावण का हाथ दब गया और वह दर्द से कराह उठा। उसके कराहने की आवाज इतनी भयानक थी कि - जिससे पृथ्वी तक कांप उठी थी और वह आवाज स्वर्ग तक सुनाई दी थी।

इसके पश्चात रावण कुछ देर मूर्छित हो गया और फिर होश में आने के पश्चात भगवान महादेव को प्रसन्न करने हेतु अपने नसों को तोड़कर तार की तरह इस्तेमाल करके एक संगीत बनाता है। जिसमें वह भगवान शिव का गुणगान करता है। यह संगीत "शिव तांडव स्त्रोत" के नाम से जाना जाता है। रावण की इस रचना से भगवान शिव एक बार फिर रावण से प्रसन्न होते हैं और उसे माफ कर देते हैं। भगवान शिव प्रसन्न होने के साथ-साथ इस बार रावण को चंद्रहास नामक तलवार भी देते हैं। इस तलवार की विशेषता यह थी कि यह जिसके भी हाथ में होगा उससे तीन लोक में कोई युद्ध में नहीं हरा सकता।

रावण की कितनी पत्नियां थी?

रावण की तीन पत्नियां थी। मंदोदरी दम्यमालिनी और तीसरी पत्नी का जिक्र कहीं मिलता नहीं; जिसे अज्ञात माना गया है।

मंदोदरी तथा दम्यमालिनी दोनों सगी बहने थी। मंदोदरी, दम्यमालिनी की बड़ी बहन थी। इन दोनों बहनों का जन्म हेमा नामक अप्सरा के गर्भ से बताया गया है। उनके पिता मयासुर (दनु के पुत्र / मय / कश्यप) थे। यह दोनों बहने पंचकन्याओं में से ही थी। जिनमें से मंदोदरी को चीर कुमारी के नाम से भी जाना जाता है।

दोस्तों, मंदोदरी भगवान शिव की पूजा और तब करके उन्हें प्रसन्न करती हैं और पृथ्वी के सबसे शक्तिशाली और विद्वान पुरुष से विवाह होने का वरदान मांगती हैं। इसी के फलस्वरूप मंदोदरी और रावण की मुलाकात श्री बिल्वेश्वर नाथ मंदिर में होती है। जहां रावण मंदोदरी की खूबसूरती से मोहित हो जाते हैं और उनसे विवाह कर लेते हैं।

रावण को अपने तीनों पत्नियों से 7 पुत्र प्राप्त हुए। जिनमें इंद्रजीत, अक्षय कुमार, अतिकाय, देवांतक, नारंतक, त्रिशिरा और प्रहस्त थे।

रावण की महान रचनाएं कौन सी हैं?

दोस्तों, रावण वेदों एवं शास्त्रों का बहुत बड़ा ज्ञानी था। रावण ने अपने जीवन काल में कई सारी महान रचनाएं की थी। जिनमें से शिव तांडव स्त्रोत और रावण संहिता शामिल है। आइए थोड़ा बहुत इस बारे में भी जान लेते हैं।

शिव तांडव स्त्रोत

शिव तांडव स्त्रोत रावण की बहुत प्रसिद्ध रचना है। इस रचना में भगवान शिव की स्तुति की गई है। रावण ने यह स्तुति तब की थी। जब वह शक्ति प्रदर्शन करने के दौरान कैलाश पर्वत को अपने हाथों में उठा लिया और शिवजी ने अपने भार को बढ़ाकर कैलाश पर्वत को अपनी जगह स्थित किया। जिसमें रावण के हाथ पर्वत के नीचे दब गए। इसी दौरान भगवान शिव से क्षमा मांगते हुए। रावण, महादेव की स्तुति गान करने लगा। इसी को बाद में शिव तांडव स्त्रोत के नाम से जाना गया।

रावण संहिता

रावण ने रावण संहिता नामक एक पुस्तक की रचना की है। इस पुस्तक में रावण ने अपने जीवन की कई बातें लिखी हैं। इसी के साथ रावण ने इसमें ज्योतिष से जुड़ी भी कई जानकारियां दी हैं। आपको बता दें - इस पुस्तक को कई भाषाओं में ट्रांसलेट तक किया गया है।

दोस्तों शिव तांडव स्त्रोत और रावण संहिता के अतिरिक्त भी रावण ने अंक प्रकाश,रावणीयम, नाड़ी परीक्षा, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद भाष्य, इंद्रजाल, कुमारतंत्र, प्राकृत कामधेनु आदि पुस्तकों की भी रचना की है।

रावण त्रिलोक विजेता कैसे मान लिया गया?

सोचने वालों के मन में यह सवाल उठता है कि - सहस्त्रबाहु अर्जुन से, उसके पश्चात राजा बाली से और फिर सूतक लोक के बली से डरकर भाग जाने वाले रावण जिसके अधीन अयोध्या, मिथिला, कौशल, वानरों के प्रदेश आदि नहीं थे। फिर भी रावण त्रिलोक विजेता कैसे मान लिया गया?

रावण को त्रिलोक विजेता इसलिए कहा गया। क्योंकि, ब्रह्मा द्वारा रावण के नाभि में अमृत कुंड स्थापित किया गया था। अमृत कुंड को केवल अग्निबाण से ही सुखाया जा सकता था और यह केवल भगवान विष्णु ही चला सकते थे। इसी के साथ भगवान शिव द्वारा दिया गया चंद्रहास तलवार जिसकी यह विशेषता थी कि - यह तलवार जिस किसी के हाथ में होगी उसे तीनों लोगों में कोई भी युद्ध में हरा नहीं सकता। रावण ने स्वर्ग लोक इंद्रलोक पर अपना आधिपत्य जमा लिया था। यही वजह थी कि - रावण को त्रिलोक विजेता कहा गया।

रावण की कौन-कौन सी इच्छाएं थी?

रावण एक विद्वान और बलशाली व्यक्ति था। वह अपनी शक्तियों से अपनी तमाम इच्छाओं को पूर्ण करना चाहता था। रावण की इच्छा है निम्न दी गई है :

  • स्वर्ग तक पहुंचने के लिए एक ऐसी सीढी हो; जिसके जरिए सीधे मोक्ष प्राप्त किया जा सके।
  • सोने में सुगंध हो ताकि उसे पहने या कहीं लगाने से वह जगह सुगंधित हो जाए और सोना खोजने में आसानी हो। रावण को सोने से बहुत लगाव था। वह दुनिया के सभी सोने पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता था। इसलिए उसने संपूर्ण लंका को सोने से आच्छादित कर दिया था।
  • खून का रंग सफेद होना चाहिए। क्योंकि, देवताओं के साथ युद्ध में जब खून नदी में मिलता है; तो सृष्टि का संतुलन बिगड़ जाता है। इस वजह से रावण अपने आप को दोषी मानता था। वह चाहता था कि - अगर खून का रंग सफेद होगा; तो पानी में मिलने के बाद पानी भी सफेद ही दिखेगा। जिससे वह अपने आप को दोषी नहीं मानेगा।
  • सृष्टि के सभी मनुष्यों का रंग काला हो। क्योंकि, रावण खुद भी काला था और वह चाहता था कि - उसके काले होने की निंदा कोई ना कर सके।

रावण के जीवन का अंत कैसे हुआ?

दोस्तों, सृष्टि का नियम है - जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु जरूर होगी। रावण भी इससे बच नहीं सकता था। लेकिन रावण ने इससे बचने के लिए ब्रह्मा जी और शिव जी की बहुत तपस्या की और उसे कुछ-कुछ अमरता जैसे ही वरदान मिल चुके थे। लेकिन, उसका अंत तो सृष्टि के नियम के अनुसार होना ही था। रामायण का ज्ञान रखने वाला हर व्यक्ति जानता है कि - रावण का वध भगवान श्रीराम ने किया। लेकिन क्या आप जानते हैं? रामायण रावण के अंत की शुरुआत कैसे हुई?

दोस्तों रावण को कुल 7 लोगों का श्राप लगा था और जिसके परिणाम स्वरूप रावण का अंत हुआ। निम्न आपको हम उन सभी पात्रों के बारे में बता रहे हैं।

रघुवंश के राजा अनरण्य का श्राप

जब रावण विश्वविजय करने के लिए निकला था। तब उसका सामना राजा अनरण्य से हुआ। राजा अनरण्य भगवान राम के वंशज थे। रावण और अनरण्य में युद्ध हुआ। जिसमें अनरण्य की मृत्यु हो गई। हालांकि मरते समय उन्होंने रावण को श्राप दिया कि - मेरे वंश में जन्मा व्यक्ति ही तेरी मृत्यु का कारण बनेगा।

भगवान शिव के वाहन नंदी का श्राप

रावण, भगवान शिव से मिलने के लिए कैलाश पर्वत गया। वहां उसने महादेव के वाहन नंदी को देखा और उनके स्वरूप की हंसी उड़ाने लगा। रावण कहता है कि - तुम तो मुझे बंदर के समान मुख वाले लगते हो और जोर जोर से हंसने लगा। इससे नाराज होकर नंदी ने रावण को श्राप दिया कि - बंदर ही तेरे सर्वनाश का कारण बनेगा।

देवी सती का श्राप

रावण को यह पता करना था कि - उसके पास भगवान शिव द्वारा दिया गया बल कितना है? इसलिए वह भगवान शिव को कैलाश पर्वत सहित लंका में लाने का दुस्साहस कर रहा था। रावण ने जब कैलाश पर्वत को उठाया तब देवी सती फिसल गई और जैसे ही रावण ने अपना पहला कदम बढ़ाया। माता देवी सती ने रावण को श्राप दिया - अरे अभिमानी रावण तु आज से राक्षसों में गिना जाएगा। क्युँकि, तेरी प्रकृति राक्षसों की जैसी हो गई है और तु अभिमानी हो गया है। यही से रावण राक्षस प्रवृत्ति वाला कार्य करने लगा।

मंदोदरी के बड़ी बहन माया का श्राप

1 दिन रावण वैजयंतपुर के शंभर राजा के यहां गया। शंभर राजा, रावण की पत्नी मंदोदरी के बड़ी बहन माया के पति थे। वहां रावण ने माया को अपनी कामवासना को शांत करने के लिए अपनी बातों में फंसा लिया। जब इस बात का पता शंभर राजा को चला तो उसने रावण को बंदी बना लिया। लेकिन उसी समय शंभर राजा पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में शंभर राजा मारा गया। पति के मृत्यु के बाद माया सती होने लगी। तब रावण ने माया से अपने साथ चलने के लिए कहा। गुस्से में माया ने रावण को श्राप देते हुए कहा कि - तुमने अपनी कामवासना के लिए मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया है। इसीलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई। अब स्त्री की वासना ही तुम्हारी मौत का कारण बनेगा।

वेदवती नामक एक तपस्वनी का श्राप

रावण एक बार हिमालय वन में विचरण कर रहा था। तभी उसने वहां वेदवती नामक एक तपस्वनी को तपस्या में लीन देखा। रावण उस तपस्वनी को देखकर उस पर लोभित हो गया। रावण, वेदवती के केश पकड़कर उसे साथ ले जाने लगा। वेदवती ने अपने केश काटकर रावण को श्राप दिया कि - तुम्हारे और तुम्हारे कुल के नाश का कारण एक स्त्री होगी। इसके पश्चात् वेदवती ने अग्नि कुंड में कूद कर अपनी जान दे दी।

रंभा का श्राप

रंभा, रावण के सौतेले भाई कुबेर के बेटे नलकुबेर की पत्नी थी। इस नाते से रंभा रावण की पुत्रवधू थी। जब रावण ने स्वर्ग लोक पर आक्रमण किया तो वहां उसे अप्सरा रंभा मिली। रावण उसे अपने साथ लाना चाहता था। लेकिन रंभा ने कहा कि मैं आपकी पुत्रवधू हूं। मेरे साथ कोई दुराचार ना करें। लेकिन रावण ने उसकी एक न सुनी।

जब यह बात नलकुबेर को पता चली तो उसने रावण को श्राप दिया कि - आज के बाद अगर रावण तू किसी भी औरत को उसकी इच्छा के विरुद्ध छूएगा तो तेरे मस्तिष्क के सौ टुकड़े हो जाएंगे। यही कारण था कि - माता सीता का अपहरण करने के बाद भी रावण की हिम्मत नहीं हुई कि - वह माता सीता को छू सके।

शूर्पणखा का श्राप

रावण की बहन शूर्पणखा का विवाह विद्युतजिव्ह हुआ जो राजा कालकेय का सेनापति था। रावण जब विश्वविजय पर निकला तो उसका कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उसमें रावण ने विद्युतजिव्ह का वध कर दिया। तभी शूर्पणखा ने रावण को श्राप दिया था कि मैं ही तेरे सर्वनाश का कारण बनूंगी।

दोस्तों, यह सभी श्राप ही रावण के जीवन के अंत का कारण बनी। यह सभी श्राप कैसे फले आइए आपको बताते हैं।

ब्रह्मा जी और शिव जी द्वारा दिए गए वरदान से यह निश्चित हो गया कि - केवल मनुष्य ही रावण को मार सकता है। ब्रह्मा जी ने रावण के नाभि में जो अमृत कुंड स्थापित किया था उसे केवल अग्निबाण ही सूखा सकता था। अग्निबाण को केवल भगवान विष्णु ही चला सकते थे। इसका साफ-साफ मतलब था कि - भगवान विष्णु को ही मानव रूप में जन्म लेना होगा।

राजा अनरण्य के श्राप से यह निश्चित हो गया कि - रघुवंश का ही कोई व्यक्ति रावण के मौत का कारण बनेगा। इसीलिए भगवान विष्णु ने रघुवंश में राम रूप में जन्म लिया। भगवान विष्णु का मनुष्य रूप में जन्म लेने का एक और मकसद था। वह वेदवती को दिया गया वरदान था। क्योंकि, वेदवती भगवान विष्णु को पति के रूप में पाना चाहती थी। तब भगवान विष्णु ने वेदवती को अगले जन्म में तुम्हारा पति बनूंगा ऐसा वरदान दिया था।

तपस्विनी वेदवती ने कहा था कि - तुम्हारे विनाश का कारण एक स्त्री बनेगी और सूर्पणखा ने भी कहा था कि - तुम्हारे विनाश का कारण मैं बनूंगी। यही हुआ जब भगवान राम लक्ष्मण और माता सीता 14 साल के वनवास के लिए नासिक के जंगलों में भ्रमण कर रहे थे। तभी शूर्पणखा ने भगवान राम को देखा और मोहित हो गई। सूर्पणखा एक सुंदर स्त्री बनकर राम से विवाह करने करना का प्रस्ताव रखने लगी। इस से गुस्से में आकर लक्ष्मण जी ने सूर्पणखा की नाक काट दी और वह रावण के पास जाकर राम से बदला लेने की बात कहती है।

यहां माया का श्राप अपना रंग दिखाने वाला था। जब शूर्पणखा रावण के पास पहुंची तो वह लक्ष्मण से बदला लेने की बात कहती है। जब वह देखती है कि - रावण उसकी बात को अनदेखा कर रहा है। तब वह माता सीता के बारे में बताती है कि - वह बहुत ही खूबसूरत है। उन्हें तुम लंका लेकर आओ। इससे रावण के मन में कामवासना जागती है और वह माता सीता का अपहरण करके लंका ले आता है।

नलकुबेर के श्राप के कारण रावण माता सीता का अपहरण करने के बावजूद भी उन्हें छू नहीं सकता था। क्योंकि, नलकुबेर ने श्राप दिया था कि - अगर तुम किसी भी स्त्री को उसके इच्छा के विरुद्ध छूओगे तो तुम्हारे मस्तिष्क के सौ टुकड़े हो जाएंगे। यही कारण था कि - रावण के कैद में होने के बावजूद भी मां सीता सुरक्षित थी।

माता सीता का अपहरण हो जाने के बाद राम और लक्ष्मण माता सीता की खोज में निकले। यह महादेव के सवारी नंदी की के श्राप का समय था। भगवान राम और लक्ष्मण से हनुमान जी और वानर सेना मिलती है; जो लंका पर आक्रमण करने के लिए तैयार थी।

अंततः रघुवंश के राजा अनरण्य का श्राप कि - मेरे ही वंशिका जन्मा व्यक्ति तेरी मौत का कारण बनेगा। अपना रंग दिखाने को तैयार था। भगवान श्रीराम, वानर सेना के साथ मिलकर लंका पर हमला कर देते हैं। 8 दिनों के युद्ध के पश्चात भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया और इस तरह रावण के जीवन का अंत हो गया।

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